मंगलवार, 29 जून 2010

स्वयंसेवक की कल्पना

पण्डित नेहरू लिखते हैं कि"कुछ लोगों का विचार था कि स्वयंसेवक के पास ऊपर से आयी आज्ञा को मानने मात्र का अनुशासन चाहिए तथा अन्य किसी बात की जरूरत नहीं, यहाँ तक कि कदम मिलाकर चलना भी स्वयंसेवक के लिए वाछंनीय नहीं। कुछ के मन में यह भाव काम कर रहा था कि प्रशिक्षित एवं अनुशासनबद्ध कवायद करनेवाले स्वयंसेवकों की कल्पना कांग्रेस के अहिंसा के सिद्धान्त से विसंगत है।’’
‘स्वयंसेवक दल’ तथा अनुशासन-सम्बन्धी इस प्रकार की विकृत धारणाओं के बीच डॉक्टरजी के मन की कल्पनाएँ साकार करने को वहाँ सुविधा कैसे मिल सकती थी ? डॉक्टरजी केवल ‘फरमाँबरदार’ सेवक नहीं तैयार करना चाहते थे। उनकी तो इच्छा थी कि देशभक्ति से ओतप्रोत, शील से विभूषित, गुणोत्कर्ष से प्रभावी तथा निस्सीम सेवाभाव से स्वयंस्फूर्त अनुशासित जीवन व्यतीत करने की आकांक्षा लेकर चलनेवाले क्रियाशील एवं कर्तव्यशील तरुण लाखों की संख्या में खड़े किये जायें। इस रचना में कार्य की आवश्यकता के अनुसार कोई नेता तथा दूसरा अनुयायी हुआ तो भी उनके गुण, स्वभाव, कर्तव्य तथा अनुशासन में दोनों के बीच थोड़ा-सा भी अन्तर नहीं होना चाहिए
केवल डॉक्टरजी बोलते रहें तथा तरुण स्वयंसेवक चुपचाप सुनकर ‘जो बताया वह करनेवाले तथा जो दिया वह खानेवाले’ दास की प्रवृत्ति से उनके अनुयायी कहलाकर व्यवहार करें, यह बात डॉक्टरजी को पसन्द नहीं थी। डॉक्टरजी का दृढ़ विश्वास था कि यदि स्वयंसेवकों के विचार को प्रेरणा दी तो वे विशुद्ध हिन्दू समाज की ओर, तथा उस संकल्प की पूर्ति के लिए अपना जीवन समर्पण करने की ओर स्वयं खिंचते चले जायेंगे। उनको यह कभी भी आशंका नहीं होती थी कि यदि स्वयंसेवकों को चारों ओर की परिस्थिति की कल्पना हुई तो हिन्दू राष्ट्र के प्रति उनका विश्वास डगमगा जायेगा। प्रत्युत उन्हें तो यही लगता थी कि देश की यथार्थ स्थिति का ज्ञान तरुण मन को हुआ तो उसे यह समझ में आ जायेगा कि संघटन के अतिरिक्त इस परिस्थिति को बदलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है, तथा उसमें से ही स्वयं प्रयत्न करने की प्रेरणा उत्पन्न होगी। डॉक्टरजी को इस प्रकार के विचारवान् तथा स्वयंस्फूर्तिवाले कार्यकर्ता निर्माण करने थे |
इसीलिए एक बार उन्होंने बैठक में प्रत्येक स्वयंसेवक को बताया कि वह एक कागज पर अपना ध्येय, संघ का ध्येय तथा वह संघ का चालक हो गया तो संघ की कार्यपद्धति और रचना कैसी रखेगा इन सबके सम्बन्ध में अपने विचार लिखे |दूसरों को विचार के लिए प्रवृत्त करने की यह डॉक्टरजी की योजना थी।

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